भारत को दुनियाभर में सुनहरी परंपराओं वाले एक महान राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। भारत का अशोक स्तंभ राष्ट्रीय चिन्हें होने के साथ-साथ देश के गौरव का प्रतीक भी है। भारत में अशोक स्तंभ को संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया गया है। हालांकि, बहुत से लोग अशोक स्तंभ के इतिहास के बारे में नहीं जानते हैं।

भारत में संवैधानिक रूप से 26 जनवरी 1950 को अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अपनाया गया था। इसकी वजह यह थी कि इसे संस्कृति और शांति का प्रतीक माना गया था। हालांकि, अशोक स्तंभ का इतिहास इतना भर नहीं है। दरअसल, अशोक स्तंभ के पीछे सैकड़ों वर्षों का इतिहास छिपा हुआ है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए आपको उस कालखंड में चलना पड़ेगा जब सम्राट अशोक का शासन हुआ करता था। सम्राट अशोक ने चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेरों की आकृति वाले स्तंभ का निर्माण करवाया था जिसे अशोक स्तंभ के रूप में जाना जाता है।

अशोक स्तंभ से जुड़े नियम
आपको बता दें कि अशोक स्तंभ को लेकर भारत में कुछ नियम हैं। अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ़ संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोग ही कर सकते हैं। भारत में कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का इस्तेमाल नहीं कर सकता। ऐसा करने पर सज़ा का प्रावधान है।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की नई संसद भवन की छत पर लगाए गए अशोक स्तंभ का अनावरण किया, जिसकी बनावट को लेकर विपक्ष हमलावर है। दरअसल नए अशोक स्तंभ में बने सिंह आक्रामक नज़र आ रह हैं। यही वजह है कि नए अशोक स्तंभ चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। नए अशोक स्तंभ को लेकर आपके मन में भी कई सवाल कौंध रहे होंगे।