युवाओं के बीच कनॉट प्लेस कितना खास है यह किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में लोग मौज मस्ती और सैर सपाटा करने के लिए कनॉट प्लेस जाते है। कनॉट प्लेस राजधानी दिल्ली की उन खास जगहों में से एक है जहां आपको बड़े-बड़े ब्रैंड्स के प्रॉडक्ट्स तो मिलते ही है, साथ ही ज़रूरत का हर वो सामान यहां आसानी से मिल जाता है जिसे ठुंठना मुश्किल है। इतना ही नहीं, दिल्ली के केंद्र में बसी इस मार्केट से दिल्ली के किसी भी कोने में आसानी से पहुंचा जा सकता है।

दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में घूमने हर कोई आता है लेकिन यह मार्केट बनी कैसे इस बारे में कम ही लोग जानते हैं। हम आपको कनॉट प्लेस से जुड़े उस इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमे बारे में कम ही लोगों को पता है।

जंगल से कर्नाट प्लेस बनने की कहानी
आज जिस जगह पर कनॉट प्लेस की मार्केट है वहां किसी जमाने में जंगल हुआ करता था जहां जंगली जानवरों का बसेरा था। आज से करीब 80 से 90 साल पहले कनॉट प्लेस एक घना जंगल था। उस वक्त अंग्रेजों को दिल्ली में बाजार बनाने के लिए एक बड़ी जगह की ज़रूरत थी और तभी अंग्रेजों की नज़र इस जगह पर पड़ी और उन्होंने यहां एक बड़ी मार्केट बनाने का फैसला लिया। कनॉट प्लेस को रोबर्ट टोर रसेल नाम के ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने डिजाइन किया था। इस मार्केट में A से L तक 12 ब्लॉक बनाए गए है।

सन 1929 में कनॉट प्लेस मार्केट को बनाने का काम शुरू किया गया और इसे बनने में करीब 4 साल का समय लगा। कनॉट प्लेस का नाम एक अंग्रेजी परिवार ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर रखा गया था। आज के समय में कनॉट प्लेस दुनिया की सबसे महंगी मार्केट्स में से एक है। इस मार्केट में ऑफिस या निजी दुकान लेना हर व्यापारी का सपना है।
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